खानाबदोश में ओमप्रकाश वाल्मीकि का संक्षिप्त जीवन, परिचय पाठ का सार , व्याख्यात्मक प्रश्न तथा महत्वपूर्ण प्रश्न अभ्यास उपलब्ध है। यह विद्यार्थियों के परीक्षा को ध्यान में रखकर लिखा गया है। विद्यार्थी पूरे लेख को अवश्य पढ़ें उससे भी आवश्यक यह है कि नीचे लिखे गए प्रश्न उत्तर को ध्यानपूर्वक पढ़ें। जिससे उन्हें पाठ का संपूर्ण ज्ञान होगा तथा किसी भी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर वह स्वयं अपने शब्दों में दे सकेंगे ऐसी आशा है।
ओमप्रकाश बाल्मीकि ने अभावग्रस्त जीवन को बड़ी ही बारीकी से देखा था।
उनके साहित्य का अध्ययन करें तो संपूर्ण साहित्य ग्रामीण परिवेश तथा किसी न किसी समस्या से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। बाल्मीकि ने स्वयं उस जीवन को जिया था इसलिए उनके साहित्य में घटनाक्रम जीवंत रूप में दर्शाए गए हैं। खानाबदोश कहानी भी ग्रामीण तथा उपेक्षित वर्ग की स्थिति उनके शोषण आदि को उजागर करता है। गांव घर छोड़कर कुछ पैसे कमाने की आस में जो मजदूर शहर की ओर पलायन करता है, वहां उसका किस प्रकार से आर्थिक तथा शारीरिक शोषण किया जाता है। इस कहानी में पढ़ने को मिलता है।
खानाबदोश ओमप्रकाश बाल्मीकि
विधा – कहानी
कहानीकार – ओमप्रकाश बाल्मीकि
जीवन परिचय –
इनका जन्म सन 1950 में बरला जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में हुआ, उनका बचपन सामाजिक व आर्थिक कठिनाइयों में गुजरा। शिक्षा प्राप्त करने में उन्हे आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े।
बाल्मीकि जी को ‘डॉक्टर अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार’ (1993) और
परिवेश सम्मान (1995) से सम्मानित किया जा चुका है।
रचनाएं –
- कविता संग्रह – ‘सादियों का संताप’, ‘बस! बहुत हो चुका’
- कहानी संग्रह – ‘सलाम’, ‘घुसपैठिये’
- आत्मकथा – ‘जूठन’, ‘दलित’, ‘साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’
साहित्यिक विशेषताएं –
हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्वपूर्ण भूमिका है।
उन्होंने अपने लेखन में जातीय अपमान , शोषण और उत्पीड़न का वर्णन किया है।
खानाबदोश पाठ का परिचय
इस सामाजिक समस्या – प्रधान कहानी के माध्यम से लेखक ने मेहनत मजदूरी करके किसी तरह गुजर बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण यातना तथा समाज की जातिवादी मानसिकता का चित्रण किया है। मजदूर वर्ग मेहनत कर इज्जत से जीना चाहता है , पर उच्च ताकत वर्ग ऐसा होने नहीं देता।
खानाबदोश पाठ के पात्र
सुकिया – पाठ का नायक और मानो का पति
मानो – पाठ की नायिका और सुकिया की पत्नी
असगर – ईंट भट्टे का ठेकेदार
मुख़्तार सिंह – ईंट भट्टे का मालिक
सुबेसिंह – मुख़्तार सिंह का बेटा जो चरित्रहीन था
महेश – दारूबाज और किसनी का पति
किसनी – महेश की पति जिसका सुबेसिंह शारीरिक शोषण करता है
जसदेव – भट्टे पर काम करने वाला मजदुर जो ब्राह्मण था।
खानाबदोश पाठ सार
सुकिया और उसकी पत्नी मानो कमाने – खाने की इच्छा से गांव देहात छोड़कर शहर आए थे। वे असगर ठेकेदार के भट्टे पर ईट पाथने का काम करते थे। भट्टे पर मोरी का काम सबसे खतरनाक था। ईंटे पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियो के अंदर डालना होता था। छोटी सी असावधानी मौत का कारण बन सकती थी।
भट्टा मजदूरों को दबड़ेनुमा छोटी-छोटी झोपड़ियों में रहना पड़ता था।
संध्या के समय दिन भर के थके हारे मजदूर रात को दबड़ों में घुस जाते थे।
सांप और बिच्छू का डर लगा रहता था तथा वातावरण में जंगल का सन्नाटा छा जाता था। मानो भट्टे के माहौल से तालमेल नहीं बिठा पाई थी, इसलिए खाना बनाते समय चूल्हे से आती चिट-पिट की आवाजों से उसे अपने मन की दुश्चिंताओं और आशंकाओं की आवाजें सुनाई देती थी। मानो के मन में शारीरिक शोषण का डर, बात न मानने पर प्रतिकूल व्यवहार की घबराहट थी। एक दिन भट्ठा मालिक मुख्तार सिंह कहीं बाहर चला गया तो उसका बेटा सुबेसिंह भट्टे पर आने लगा। सुबेसिंह के भट्टे पर आने से भट्टे का माहौल बदल गया। ठेकेदार असगर उससे डरा – डरा रहने लगा।
सूबेदार अपनी सेवा टहल करवाने के बहाने एक मजदूर महेश की पत्नी किसनी का यौन शोषण करने लगा।
उसने किसनी को साबुन कपड़े और ट्रांजिस्टर ला कर दिए।
वह किसनी को शहर भी घुमाने ले जाने लगा, किसनी खुश थी।
वह सूबेसिंह के साथ अधिक समय व्यतीत करने लगी थी।
उसके रंग – ढंग में परिवर्तन आ गया।
उसका पति महेश शराब पीने लगा था, उसे देखकर मजदूरों मैं फुसफुसाहट शुरू हो गई थी।
मानो – सुकिया की आशा
मानो और सुकिया खुश थे क्योंकि भट्टे पर काम करते हुए उन्होंने कुछ पैसे बचाएं थे।
भट्टे पर पकती लाल-लाल ईटों को देखकर मानो खुश थी। वह ज्यादा काम करके, ज्यादा रुपए जोड़कर अपना एक पक्का मकान बनाने का सपना देखने लगी थी। एक दिन किसनी के अस्वस्थ होने पर सुबेसिंह ने ठेकेदार असगर के द्वारा मानो को अपने दफ्तर में बुलवाया। बुलावे की खबर सुनते ही मानो और सुकिया घबरा गए। सुबेसिंह की नियत भांप गए, मानो इज्जत की जिंदगी जीना चाहती थी।
वह किसनी बनना नहीं चाहती थी, उसकी घबराहट देखकर जसदेव मानो के स्थान पर स्वयं सुबेसिंह से मिलने चला गया। सुबेसिंह ने जसदेव को अपशब्द कहे और लात – घुसा से पिटाई कर दी। सुकिया और मानो उसे झोपड़ी में ले आए। जसदेव के इस अकेलेपन के कारण मानो उसके लिए रोटी बना कर ले गई लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उसने मानो की बनाई रोटी नहीं खाई।
असगर ठेकेदार, जसदेव को सुकिया और मानो के चक्कर में ना पढ़ने की सलाह देता है।
जसदेव का व्यवहार मानो और सुकिया के प्रति बदलता चला जाता है।
जसदेव की पिटाई से भट्ठा मजदूरों में भय फैल जाता है।
सुबेसिंह की हिदायत पर असगर ठेकेदार सुकिया और मानो को तरह-तरह से परेशान करने लगा।
उसने सुकिया से ईट पाथने और सांचा ले लिया, और मोरी का काम दे दिया।
एक सुबह मानो ने अपनी ईट पाथने के जगह पर सारी ईटें टूटी हुई देखी वह दहाड़े मार कर रोने लगी। आवाज सुनकर सुकिया वहां आया और टूटे ईंटों देखकर हक्का-बक्का रह गया।
असगर ठेकेदार ने टूटी ईंटों की मजदूरी देने से साफ इनकार कर दिया।
सुकिया सारी बात समझ गया और मानो का हाथ पकड़ कर बोला कि यह लोग हमारा घर नहीं बनने देंगे। वह लोग भट्टे को छोड़कर खानाबदोश की तरह किसी अनजान स्थान की ओर चल पड़े।
खानाबदोश पाठ का व्याख्या अभ्यास
मानो का हृदय फटा ………………लेना-देना ही ना हो। ।
लेखक का नाम – ओमप्रकाश बाल्मीकि
पाठ का नाम – खानाबदोश
प्रसंग –
इस कहानी में मजदूरों के शोषण व यातना को चित्रित किया गया है। प्रस्तुत अंत में उस समय का चित्रण है , जब मानो रात में पाथी गई अपनी ईटों को सुबह टूटा – फूटा पाती है तो उसे उसका घर बनाने का सपना टूटता प्रतीत होता है।
व्याख्या –
उसका हृदय फटा जा रहा है। वह पागल सी हो गई थी। उसका सपना किसी ने तोड़ दिया था, टूटी फूटी ईटों को देख कर उसे लगा कि किसी ने उसकी पक्की ईंटों के मकान को तहस-नहस कर दिया हो।
उसके कुछ देर बाद जसदेव वहां आया वह भी निरपेक्ष भाव से चुपचाप खड़ा था।
ऐसा लग रहा था कि उसे उन टूटी-फूटी ईटों से कोई लेना-देना ही ना हो।
मजदूर होते हुए भी जातिगत आधार पर अपने को श्रेष्ठ या निम्न समझकर एक मजदूर दूसरे, मजदूर की लड़ाई को अपनी नहीं समझता है। तो ऐसे में शोषण मुक्त समाज की कल्पना भी दम तोड़ देती है। ऐसे में मानो का स्थिर हो जाना स्वभाविक था।
विशेष –
- मानव मनोविज्ञान पर लेखक की अच्छी पकड़ है। मानो की मनोदशा व जसदेव की तटस्थता का चित्रण।
- ‘हृदय फटना’, ‘बौरा जाना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा सजीव हो उठी है।
- खड़ी बोली में भावों की सशक्त अभिव्यक्ति है।
- भाषा के चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।
- लेखक ने बड़ी ही बारीकी से मजदूर वर्ग के शोषण व उत्पीड़न का चित्रण किया है।
खानाबदोश महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न – सुबेसिंह के संपर्क में आने पर किसनी के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया और क्यों ?
उत्तर – सुबेसिंह भट्टा मालिक, मुख्तार सिंह का अय्यास बेटा था। उसने किसनी को दफ्तर की सेवा टहल करने का काम दे दिया था। शुरू शुरू में किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया था। धीरे-धीरे वह भट्टे पर गारे मिट्टी का काम छोड़कर रोज ही दफ्तर में रहने लगी थी। इससे किसनी के पास वह सब सुविधाएं आ गई जिनकी अन्य मजदूर कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
अब वह हैंडपंप के नीचे साबुन से रगड़ – रगड़ कर नहाने लगी थी।
वह अपने पति महेश की उपेक्षा करने लगी थी और ज्यादातर समय दफ्तर में खिलखिलाती रहती थी। वह सुबेसिंह के साथ शहर भी जाने लगी थी, और कई कई दिनों तक शहर से लौटती नहीं थी।
जब लौटती थकी हारी निढाल और मुरझाई हुई।
इससे वह अन्य मजदूरों में कानाफूसी का कारण बन गई थी।
वह कई सुविधाओं के लिए शोषण और गलत के ऐसे रास्ते पर चल पड़ी थी, जहां से लौटना मुश्किल था।
प्रश्न – खानाबदोश कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – खानाबदोश कहानी की मूल संवेदना है मजदूर वर्ग का शोषण। इस कहानी में लेखक ने मजदूरी करके किसी तरह गुजर बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण तथा यातना को चित्रित किया है। मजदूर यदि इज्जत के साथ जीना भी चाहे तो सुबेसिंह जैसे समृद्ध और ताकतवर लोग उन्हें जीने नहीं देते। हमारे समाज में व्याप्त जातिवादी मानसिकता की समाज को बांटने में अहम भूमिका निभाती है।
शोषक वर्ग इस को एक हथियार के रूप में अपने पक्ष में प्रयोग करता है।
शोषित वर्ग कभी भी अपने लिए कुछ नहीं कर पाता तब वह रोजी-रोटी की समस्या में उलझ कर रह जाता है। इस कहानी में भी जमीन से उखड़े हुए लोगों की व्यथा को बताता है। जो रोजी-रोटी कमाने की इच्छा मे शोषण चक्र में ऐसे फँस जाते हैं कि आजीवन खानाबदोश जैसा जीवन जीने को विवश होकर रह जाते हैं।
प्रश्न – खानाबदोश कहानी में आज के समाज की किन – किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है ?
इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस कहानी में आज के समाज की निम्नलिखित समस्याओं को रेखांकित किया गया है –
- समाज में जाति भेद अभी तक कायम है
- मजदूर वर्ग का शोषण हो रहा है और वह इस यातना को झेलने के लिए विवश थे
- मजदूर अभी भी नारकीय जीवन जीते हैं उसके लिए सुविधाओं का अभाव है।
- समाज में स्त्रियां सुरक्षित नहीं है, वह दोहरे शोषण की शिकार है।
- स्त्रियों के लिए सम्मानजनक दृष्टिकोण का अभाव है।
- समाज में शोषण को देखकर चुप रहने की मानसिकता व्याप्त है।
- इन समस्याओं के प्रति लेखक का दृष्टिकोण मानो और सुकिया के माध्यम से प्रकट हुआ है।
- दोनों अपना जीवन जीना चाहते हैं, परंतु शोषणकारी शक्तियां उन्हें प्रताड़ित करती है।
- वह शोषण के सम्मुख आत्मसमर्पण नहीं करते बल्कि कष्ट पूर्ण जीवन झेलने के लिए कहीं और चल देते हैं।
- वह खानाबदोश की जिंदगी जीने के लिए विवश है।
- कहानीकार के पास इस शोषण का कोई समाधान नहीं है, इतना अवश्य है कि वह शोषित और मजदूर वर्ग से गहरी सहानुभूति रखता है। पर वह कोई तर्क पूर्ण समाधान प्रस्तुत नहीं कर पाया है।
खानाबदोश ओमप्रकाश बाल्मीकि अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न – सुकिया और मानो भट्टे पर क्या काम करते थे ?
उत्तर – सुकिया और मानो भट्टे पर ईट पाथने का काम किया करते थे, यही उनके रोजगार का प्रमुख साधन था।
प्रश्न – मोरी का काम खतरनाक क्यों था ?
उत्तर – ईट के भट्टे पर मोरी का काम सबसे खतरनाक था क्योंकि इन मोरी में घुसकर लकड़ी, कोयला, बुरादा आदि डाला जाता था। इसकी आग बेहद तीव्र होती है, थोड़ी सी असावधानी आदमी को जलाकर राख भस्म कर देती है। कई बार बड़ा हादसा भी यहां देखा जाता है, जिसमें मोरी में काम करने वाला मजदूर जलकर मर जाता है।
प्रश्न – संध्या के समय भट्टे का वातावरण कैसा हो जाता था ?
उत्तर – ईट का भट्टा गांव, बस्ती या शहर से दूर होता है। जिसका प्रमुख एक कारण मिट्टी की उपलब्धता और भट्टे से निकलने वाला भयंकर धुंआ होता है।ईट भट्टे पर संध्या होने के उपरांत सन्नाटा पसर जाता है जो घना जंगल जैसा प्रतीत होता है। सांप, बिच्छू आदि का भय संध्या के उपरांत अधिक बढ़ जाता है। मजदूरों के रहने का ठीक प्रकार से घर नहीं होता, जिसके कारण उन्हें डर के माहौल में रात बितानी होती है।
प्रश्न – मानो के मन की दुश्चिंताओं और आशंकाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – मानो भट्टे पर अपने पति सुकिया के साथ नए-नए आए थे उन्हें भट्टे पर काम करने का पूर्व अनुभव नहीं था। इसलिए मानो भट्टे के वातावरण से तालमेल नहीं बिठा पा रही थी। उसे सदैव वहां पसरा हुआ सन्नाटा काटने को दौड़ता था, अपने स्वाभिमान और स्त्री की मान मर्यादा बनाए रखने का खयाल सदैव सताता रहता था।
अनेकों प्रकार की आशंकाएं, चिंताएं उसके मन में जन्म लेती थी।
इन चिंताओं से परे उसने जलती हुई भट्टी में ईटों को देखते हुए अपना घर बनाने का सपना देखा और अधिक मजदूरी करके पैसा कमाने का प्रण लिया।
प्रश्न – सुबेसिंह के संपर्क में आने पर किसनी के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया और क्यों ?
उत्तर – सुबेसिंह के संपर्क में आने से किसनी में निम्नलिखित परिवर्तन देखने को आए
- व्यक्तिगत व्यवहार में परिवर्तन –
सुबेसिंह के संपर्क में आने से किसनी के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आया जो मजदूर वर्ग से भिन्न था।
- हैंड पंप पर साबुन से नहाना –
सुबेसिंह ने किसनी को नहाने के लिए साबुन दिया था, किसनी उस साबुन से स्नान करती और खुश होती थी साबुन मजदूरों के लिए सुलभ नहीं था।
- रेडियो की उपलब्धता –
रेडियो की उपलब्धता किसनी के पास थी क्योंकि सुबेसिंह ने उसे शहर से एक रेडियो लाकर दिया था। यह सभी शौक के सामान मजदूर के लिए जुटा पाना आसान काम नहीं होता।
- ऑफिस में हंसी करना –
ऑफिस जाने के बाद किसने का हंसना , बोलना , मजाक करना उसके स्वभाव में आ गया था। वह ऑफिस जाती तो वहां से जोर-जोर हंसी की आवाज आया करती थी।
यह उसके स्वभाव में सबसे बड़ा बदलाव था।
- शहर जाना और कई दिनों बाद लौटना –
सुबेसिंह के साथ वह शहर जाया करती थी और बहुत दिनों बाद लौट कर आती थी। शहर से लौटने के बाद वह थकी हारी मुरझाई सी होती थी। घर आकर वह नीढाल पड़ जाया करती थी, इन सभी बातों से वहां के मजदूरों में कानाफूसी भी आरंभ हो गई थी।
प्रश्न – सुबेसिंह ने जसदेव की पिटाई क्योंकि की।
उत्तर – सुबेसिंह ने किसनी को ऑफिस में सेवा-टहल कराने के लिए रखा था। किसनी जब बीमार हुई तो उसने असगर ठेकेदार से सुखिया की पत्नी मानो को ऑफिस में सेवा टहल कराने के लिए बुलाया।
सभी मजदूर किसनी के विषय में जान चुके थे, किस प्रकार सुबेसिंह ने किसनी का शारीरिक शोषण किया था, यह बात अब छिपी नहीं थी।मानो को ऑफिस में बुलाने की बात सुनकर जसदेव जो जाति का ब्राह्मण और वही मजदूरी किया करता था। वह मानो के स्थान पर ऑफिस में सेवा-टहल करने पहुंचता है।
जिसपर क्रोध में आकर सुबेसिंह उसकी जमकर पिटाई कर देता है।
प्रश्न – जसदेव ने मानो का बनाया खाना क्यों नहीं खाया ?
उत्तर – सुबेसिंह की पिटाई के बाद जो जसदेव को मजदूर उसके घर लेकर आते हैं। वह अकेला रहता है, स्वयं खाना बनाता है किंतु चोट लगने के कारण वह स्वयं का खाना बनाने में असमर्थ था।
इस पर मानो अपने घर से खाना बनाकर जसदेव के लिए ले जाती है।
किंतु जसदेव जाति का ब्राह्मण था , उसने मानो के हाथों बनाया हुआ खाना खाना स्वीकार नहीं किया। यहाँ लेखक जाति के प्रति किस प्रकार लोगों की मानसिकता है उसे उजागर करता है। एक मजदूर होते हुए भी दूसरे मजदूर के हाथों से बना खाना नहीं खाना सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति को उजागर करता है।
प्रश्न – सुबेसिंह ने मानो और सुकिया को किस-किस तरह से परेशान किया ?
उत्तर – वैसे तो मालिक अपने नौकरों पर छोटे-मोटे अत्याचार किया करता ही है, किंतु कुछ बड़े अत्याचार या परेशानी निम्न प्रकार से की है – मानो को ऑफिस में सेवा टहल करने के लिए बुलाना-सुकिया के बीमार होने के बाद सुबेसिंह ने मानो को ऑफिस में सेवा टहल करने के लिए बुलवाया था।
इसके पीछे उसका अयाश मन कार्य कर रहा था।
जिसपर मानो ने ऑफिस में सेवा करना स्वीकार नहीं किया।
पाथे हुए ईट को तोड़ देना -भट्टे में पकते हुए ईटों को देखकर सुकिया और मानो ने अपना पक्का मकान बनाने का सपना देखा था। ‘
जिसके लिए वह दिन-रात एक कर के मजदूरी करते थे।
ऑफिस में कार्य करने से मना करने के बाद सुबेसिंह उन्हें तरह-तरह से परेशान किया करता था।
हद तब पार हो गई जब रात को मानो द्वारा पाथे हुए ईटों को तोड़ दिया गया।
मानो द्वारा पाते हुए ईट को तोड़ने के साथ उसका पक्के मकान को बनाने का सपना भी टूट जाता है। वह जिल्लत भरी जिंदगी और नहीं जीना चाहता जिसके लिए उसे अपने मानसिक तथा शारीरिक शोषण को सहना पड़े। वह ऐसा कार्य करना नहीं चाहते थे क्योंकि दोनों स्वाभिमानी थे। स्वाभिमान की रक्षा करते हुए वह वहां से पलायन कर जाते हैं तथा खानाबदोश की जिंदगी जीते हैं।
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प्रश्न 1 – आपके विचार से मानो द्वारा बनाई ईटें किसने और क्यों तोड़ी होगी ?
2 – मानो और सुकिया ने क्या सपना देखा था? वह सपना कैसे टूट गया?
3 – खानाबदोश कहानी के शीर्षक का औचित्य स्पष्ट कीजिए।
4 – खानाबदोश कहानी की मूल संवेदना अथवा भाव पर प्रकाश डालिए।
5 – ईटों को जोड़कर बनाए चूल्हे में जलती लकड़ियों की जैसे मन में पसरी चिंताओं और तकलीफों की प्रति धनिया थी।
जहां सब कुछ अनिश्चित था, यह वाक्य मानो की किस मानसिक स्थिति को उजागर करता है ?
6 – सुकिया ने मानो की आंखों से बहते तेज अंधड़ों को देखा और उसकी प्रक्रिया अपने अंतर्मन में महसूस किए।
सपनों के टूट जाने की आवाज उसके कानों को फाड़ रही थी। प्रस्तुत पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
7 – मानो, किसनी क्यों नहीं बनना चाहती थी ?
आशय स्पष्ट कीजिए (खानाबदोश ओमप्रकाश बाल्मीकि)
प्रश्न 1 – अपने देश की सूखी रोटी भी प्रदेश के पकवानों से अच्छी होती है।
2 – तुम तो दिन रात साथ काम करते हो ……….. फिर मेरी खातिर पिटे ………… फिर यह वामन म्हारे बीच कहां से आ गया।
3 – सपनों के कांच उसकी आंखों में किरकिरीरा रहे थे।
4 – भट्ठा मजदूरों के बच्चों का जीवन कैसा होता है? उनकी शिक्षा व्यवस्था कैसे होती होगी? इस पर अपने विचार लिखें।
खानाबदोश ओमप्रकाश बाल्मीकि कहानी पर मेरी राय
खानाबदोश की रचना कर ओमप्रकाश वाल्मीकि साहित्य जगत में एक अमित छाप छोड़ गए हैं। यह साहित्य सामाजिक व्यवस्था को बारीकी से उजागर करती है। एक मजदूर किस प्रकार अपना खानाबदोश जीवन जीने के लिए मजबूर रहता है। समाज की शोषण शक्तियां किस प्रकार निरंतर दलितों और मजदूरों का शोषण करती है इस कहानी में स्पष्ट होता है।
बाल्मीकि ने अपने जीवन में इस प्रकार का संघर्ष किया था तथा महसूस किया था इसलिए उनके साहित्य में इस प्रकार का वर्णन जीवंत रूप में देखते ही बनता है।
खानाबदोश वह लोग तथा जाती होते हैं जो एक जगह कभी टिक्कर नहीं रहते, जहां उन्हें व्यवसाय मिलता है वह वहां के लिए पलायन कर जाते हैं। रोजगार खत्म होते ही, वह दूसरी जगह पलायन करने को मजबूर होते हैं। उनके पास कोई अन्य आय का स्रोत नहीं होता, ना ही उनके पास कोई अपना घर होता है।
इसलिए वह खानाबदोश की जिंदगी जीने को मजबूर होते हैं।
जो मजदूर स्वाभिमान की रक्षा करते हुए कार्य करते हैं, उसे पूंजीपति वर्ग तथा शोषण करने वाला वर्ग निरंतर परेशान करता है। इस वर्ग से छुटकारा पाना बेहद कठिन होता है , अधिकतर मजदूर शोषण का शिकार होते हैं या पलायन करने को मजबूर। खानाबदोश कहानी में इन्हीं मर्म को उकेरा गया है। सुकिया तथा मानो दंपत्ति अपना घर बार छोड़कर पूंजी कमाने के लिए शहर की और पलायन करती है। शहर में विभिन्न प्रकार की समस्याओं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है किंतु मानो अन्य मजदूरों की भांति समझौता नहीं करती और स्वाभिमान से जीने के लिए दूसरी जगह पलायन कर जाती है।
इस पलायन के साथ एक खानाबदोश जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाती है।
समग्रतः कहा जा सकता है कि लेखक ने खानाबदोश कहानी के माध्यम से मजदूरों के जीवन पर बड़ी सूक्ष्मता से अध्ययन किया है और एक दस्तावेज के रूप में यह कहानी अपने पाठकों तक रखी है।