इस लेख में आप ममता कालिया का संक्षिप्त जीवन परिचय, दूसरा देवदास पाठ का सार, महत्वपूर्ण प्रश्न तथा सप्रसंग व्याख्या आदि का अध्ययन करेंगे।
दूसरा देवदास, ममता कालिया की कालजई रचना है। यह प्रेम के प्रथम अनुभव से ओतप्रोत है। यह कहानी शरतचंद द्वारा रचित ‘देवदास’ जैसी प्रेम की अनुभूति कराता है। ममता कालिया ने इस लेख में युवा प्रेम के प्रथम के अनुभव को बड़ी ही बारीकी से अभिव्यक्त किया है। यह लेख परीक्षा की दृष्टि से तैयार किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए गागर में सागर भरने के समान है।
Dusra Devdas Mamta Kaliya
लेखिका परिचय – ममता कालिया
जन्म / स्थान – 1940 मथुरा उत्तर प्रदेश
शिक्षा – उनकी शिक्षा विभिन्न शहरों में हुई जैसे – नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया।
कार्य –
- अध्यापन कार्य – दौलत राम कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी अध्यापिका रही। एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय मुंबई में अध्यापन कार्य, महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज इलाहाबाद में प्रधानाचार्य रही।
- निदेशक कार्य – भारतीय भाषा परिषद कोलकाता में निदेशक रही।
- स्वतंत्र लेखन कार्य – वर्तमान में नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही है।
Dusra devdas mcq with solution दूसरा देवदास बहुविकल्पीय
रचनाएं – उपन्यास –
- बेघर
- नरक दर नरक
- एक पत्नी के नोट्स
- प्रेम कहानी
- लड़कियां
- दौड़।
कहानी संग्रह –
- पच्चीस साल की लड़की
- थिएटर
- रोड के कौवे।
- इसके अतिरिक्त 12 कहानी संग्रह है जो ‘संपूर्ण कहानियां’ नाम से दो खंड में प्रकाशित है।
एकांकी संग्रह –
- यहां रहना मना है
- आप न बदलेंगे।
काव्य –
- खाँटी
- घरेलू औरत
- कितने प्रश्न करूँ।
अंग्रेजी काव्य संग्रह –
- ट्रिब्यूट टू पापा एंड अदर पोयम।
पुरस्कार –
- सरस्वती पत्रिका का कहानी पत्रिका सम्मान।
- अभिनव भारती का रचना सम्मान , कोलकाता।
- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का कहानी सम्मान
- साहित्य भूषण प्राप्त किया
साहित्यिक विशेषताएं – मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को अपने लेखन में स्थान दिया है। लेखन में कहीं सटीक व्यंग्य है तो कहीं कल्पना और रूमानियत है।युवा मन के आकर्षण और संवेदनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान की है।
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भाषा शैली – साधारण शब्दों को भी आकर्षक भाषा शैली में, प्रस्तुत करना ममता कालिया की विशेषता है। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति, शब्दों की परखता, सजीवता, सरलता, सुबोधता, व्यंग्य की सटीकता और रोचकता उनकी कहानियों के प्राण है।
तत्सम, तद्भव, देशज शब्दों के साथ-साथ ग्रामीण अंचल के शब्दों का भी प्रयोग किया है।
दूसरा देवदास ममता कालिया
विधा – कहानी
पाठ की मूल संवेदना – ममता कालिया की कहानी ‘दूसरा देवदास’ में प्रेम के महत्व और उसकी गरिमा को ऊंचाई प्रदान करती है। कहानी से यह सिद्ध होता है कि प्रेम के लिए किसी नियत व्यक्ति, स्थान और समय की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह स्वतः ही घटित हो जाता है।
21वीं सदी के भोग विलास की संस्कृति ने प्रेम का स्वरूप अधिकतर उच्छश्रृंखल कर दिया है। ऐसी स्थिति में यह कहानी प्रेम के सच्चे स्वरूप को रेखांकित करती है और दूसरी तरफ युवा मन की संवेदना, भावना और कल्पनाशीलता को भी प्रस्तुत करती है।
दूसरा देवदास – पाठ का सार
हर की पौड़ी का मनोहारी दृश्य – हर की पौड़ी पर संध्या के समय गंगा की आरती का रंग ही निराला होता है। भक्तों की भीड़ मनोकामना की पूर्ति के लिए फूल, प्रसाद आदि खरीदती है। उस समय पण्डे और गोताखोर सक्रिय हो जाते हैं। चारों तरफ पूजा का वातावरण है, पंच मंजिली निलांजलि में लगे सहस्त्र दीप जल उठते हैं और आरती शुरू हो जाती है। मनौतिओं के दीए लिए हुए फूलों के छोटे-छोटे दोने गंगा की लहरों पर इठलाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। पूरे वातावरण में चंदन और धूप की सुगंध फैली हुई और भक्तजन संतोष भाव से भर उठते हैं।
गंगा पुत्रों का जीवन परिवेश – गंगा पुत्र उन गोताखोरों को कहते हैं जो गंगा में डुबकी लगाकर भक्तों द्वारा छोड़े गए पैसों को इकट्ठा करके अपनी आजीविका चलाते हैं। इनका जीवन गंगा पर ही निर्भर करता है यह रेजगारी बटोरकर अपनी बहन या पत्नी को कुशाघाट पर दे आते हैं जो इन्हें बेच कर नोट कमाती है। कभी – कभी इनके साथ हादसा भी हो जाता है, किंतु बगैर परवाह किए यह अपने कार्य में लगे रहते हैं।
दूसरा देवदास में नायक नायिका का प्रथम परिचय –
कहानी का नायक ‘संभव’ है और नायिका ‘पारो’ है। संभव कुछ दिनों के लिए अपनी नानी के घर आया हुआ है। नास्तिक होते हुए भी अपने माता – पिता के कहने पर गंगा का आशीर्वाद लेने आया हुआ है। नायक – नायिका का प्रथम परिचय गंगा किनारे के मंदिर में होता है। संभव मंदिर में पैसे चढ़ाने के उपरांत अपना हाथ कलावा बंधवाने के लिए आगे बढ़ाता है। तभी एक नाजुक सी कलाई भी कलावा बंधवाने के लिए आगे बढ़ती है। संभव उस गुलाबी कपड़ों में भीगी लड़की को देखता है।पुजारी दोनों को दंपत्ति समझकर आशीर्वाद देता है।
सुखी रहो फलो –
फूलो जब भी आओ साथ ही आना। गंगा मैया मनोरथ पूरे करें, लड़की घबराहट में छिटककर दूर हो गई और तेजी से चली गई। इस प्रकार दोनों के बीच प्रथम आकर्षण हर की पौड़ी पर उत्पन्न होता है, जो निरंतर घटने वाली घटनाओं के तारतम्य से प्रेम में बदल जाता है।इसे प्रथम दृष्टि का प्रेम कहा जा सकता है।
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संभव की मनः स्थिति (लड़की से मिलने के पश्चात) –
उस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में कल्पना और सपनों के पंख लगा दिए उसके अंदर पुनः मिलने की बेचैनी पैदा हो गई। यह एक ऐसी निराली अनुभूति थी जो बेचैनी के साथ सुख भी प्रदान कर रही थी। वह मन ही मन उसके रूप को याद कर उससे बातचीत के बारे में सोचने लगा। ऐसा आकर्षण उसे प्रथम बार महसूस हो रहा था।
लड़की का आंख मूंदकर अर्चना करना, माथे पर भीगे बालों की लट, कुर्ते को छूता गुलाबी आंचल और उसका सौम्य स्वर।
संभव सारी रात इन्ही ख्यालों में खोया रहा। यकायक उसे बिंदिया और श्रृंगार के अन्य साधन भाने लगे और मांग में तारे भरने जैसे गीत अचानक अच्छे लगने लगे।
मनसा देवी पर मनोकामना की गांठ –
मनसा देवी पर सभी भक्तजन लाल – पीले धागे मनोकामना हेतु बांध रहे थे। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की गांठ लगाई। जिसमें पुनः उस लड़की से मिलने की इच्छा थी। अब प्रथम आकर्षण प्रेम में परिवर्तित हो गया था। दूसरी तरफ पारो ने भी इसी प्रकार की आशा लिए मनोकामना की गांठ लगाई। दोनों ही एक दूसरे से मिलने को आतुर थे, अचानक मंदिर से बाहर दोनों का पुनः मिलन हो जाता है।
दोनों ने अपनी – अपनी मनोकामना की गांठ के इतने शीघ्र परिणाम की अपेक्षा नहीं की थी।
पारो की मनोदशा – पारो की मनोदशा भी संभव से भिन्न न थी, वह स्वयं भी उसके आकर्षण में बंध चुकी थी। युवा मन का निश्चल प्रेम केवल एक झलक देखने के लिए व्याकुल था।
मनसा देवी पर लगी मनोकामना की गांठ का परिणाम संभव से मिलने के रूप में आया तो वह आश्चर्य मिश्रित सुख में डूब गई।सफेद साड़ी में उसका चेहरा लाज से गुलाबी हो रहा था क्योंकि उसे भी इस बात की प्रतीक्षा थी।
उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया और मन ही मन एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लिया। मनोकामना पूरी होने से देवी पर आस्था और संभव के प्रति प्रेम और अधिक दृढ़ और स्थाई हो गया।
दूसरा देवदास सप्रसंग व्याख्या
एकदम प्रकोष्ठ में चामुंडा …………….. शीश नवाते।
प्रसंग –
पाठ का नाम – दूसरा देवदास
लेखिका – ममता कालिया
संदर्भ –
इस कहानी में लेखिका ने युवा मन के प्रेम के प्रति भावों, प्रथम आकर्षण और उससे उत्पन्न संवेदनाओं को व्यक्त करने के साथ-साथ धार्मिक स्थानों पर बढ़ती व्यापारिक वृत्ति का भी वर्णन किया है।
व्याख्या –
इन पंक्तियों में लेखिका ने धार्मिक स्थलों पर बढ़ते व्यापार का वर्णन किया है। मनसा देवी में पहुंचने के बाद संभव ने चढ़ावा चढ़ाने के लिए एक थैली खरीदी। मंदिर के कक्ष में चामुंडा रूप में मनसा देवी विराजमान थी। आसपास का वातावरण भक्तिमय था किंतु मानव का यह स्वभाव है कि वह बिना लाभ की कामना के लिए कोई कार्य नहीं करता। यहां तक कि ईश्वर की भक्ति के पीछे भी अपने और अपनों के सुख की कामना रहती है। लोग भगवान के दर्शन बाद में करते हैं, पहले कामना पूर्ति की गांठ बांध लेते है।
लेन-देन की प्रवृत्ति पूजा में भी व्यक्ति का साथ नहीं छोड़ती।
अन्य धार्मिक स्थलों की भांति यहां भी व्यापार अर्थात बड़े चढ़ावे वालों को पहले और अलग से दर्शन करने की सुविधा थी और आम लोगों को केवल दूर से ही दर्शन कराए जा रहे थे। यह पुजारियों की व्यापारिक वृद्धि की ओर संकेत करता है।
भाषा विशेष –
- मानव की स्वार्थ वृत्ति और व्यापार वृद्धि को व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है
- धार्मिक स्थलों पर भक्ति के स्थान पर पैसे को अधिक महत्व दिया जाता है
- भाषा सरल, चित्रात्मक और सहज है
- तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।
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दूसरा देवदास प्रश्न उत्तर
प्रश्न – ‘दूसरा देवदास’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लेखिका ने कहानी का शीर्षक ‘दूसरा देवदास’ सोच समझ कर रखा है जो कहानी के मूल कथ्य को स्पष्ट करने में समर्थ है।
शरतचंद्र की रचना ‘देवदास’ में नायक देवदास , पारो पर अपना प्रेम लूटाता है और अंत तक यह प्रेम एक निश्चित रूप में जीवित रहता है। उसी प्रकार संभव भी पारो को प्राप्त करने के लिए बेचैन है।
देवदास और पारो निश्चल प्रेम के प्रतीक हैं , इसलिए संभव के लिए लेखिका ने दूसरा देवदास शीर्षक रखा।
प्रश्न – मनोकामना की गांठ भी अद्भुत , अनूठी है , इधर बांधों उधर लग जाती है। कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर – पारो भी संभव से प्रेम करने लगी थी हर की पौड़ी पर लड़के के साथ छोटी सी मुलाकात ने पारो को विचलित कर दिया। वह मन ही मन उस से प्रेम करने लगी थी , वह दोबारा उससे मिलना चाहती थी। उसने भी कुछ ऐसी ही मनोकामना की पूर्ति के लिए धागा बांधा था। उसे उम्मीद नहीं थी कि मनसा देवी से मांगी गई मुराद इतनी जल्दी पूरी हो जाएगी। वह संभव से मिलने के बाद प्रसन्न न थी , वह हैरान भी थी कि उसकी इच्छा इतनी जल्दी पूरी हो गई।
अभिव्यक्ति और माध्यम ( class 11 and 12 )
कार्यसूची लेखन ( अभिव्यक्ति और माध्यम ) संपूर्ण जानकारी
उपन्यास के तत्व की संपूर्ण जानकारी उदाहरण सहित
प्रश्न – दूसरा देवदास पाठ के आधार पर हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती का भाव पूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा जी की आरती मनोहारी होती है। भक्त पूरी श्रद्धा के साथ गंगा के घाट पर उपस्थित होते हैं। प्रकृति , श्रद्धा और भक्तिमय हो जाता है।
लोग सभी सांसारिक विचार को पीछे छोड़ कर यहां दरबार में सच्चे हृदय से शामिल होने के लिए आतुर रहते हैं। गंगा की आरती जैसे ही आरंभ होती है शास्त्रों बतियां जल उठती है।
भक्तजन हाथों में फूल और दीए लेकर खड़े होते हैं और गंगा की धारा में मनोकामना के साथ प्रवाहित करते हैं। गंगा पुत्र जो गंगा की धारा में तैर कर उन प्रवाहित फूल और दिए के साथ चढ़ावे को एकत्र कर अपना जीवन चलाते हैं उनका कार्य आरंभ होता है।
व्यवस्था को बनाए रखने के लिए स्वयं सेवकों की मुस्तैदी भी होती है।
पंडित पुजारी किसी के पास समय नहीं होता , वह अपने कार्य में प्रतिदिन की भांति लग जाते हैं। भक्तों को स्नान के बाद टीका और कलावा लगाना और उन्हें आशीर्वचन देना यह कार्य आरंभ हो जाता है।
भक्त लोग मनोकामना को पूर्ण करने के लिए दीप तथा आरती में शामिल होते हैं। कुछ भक्त स्नान कर अपने सभी कलुषित विचार को गंगा में त्याग देते हैं और स्वच्छ निर्मल मन से स्नान कर मंदिर में दर्शन करते हैं और भक्ति का लाभ लेते हैं।
कुल मिलाकर गंगा आरती का दृश्य बड़ा ही मनोरम और अद्भुत रहता है।
प्रश्न – ‘गंगा पुत्र’ के लिए गंगा मैया ही जीविका और जीवन है। इस कथन के आधार पर गंगा पुत्रों के जीवन परिवेश की चर्चा कीजिए।
उत्तर – कहानी में गंगा पुत्र उन्हें कहा गया है जो प्रवाहित किए गए दीप तथा फूल के साथ चढ़ावे को गंगा की धारा में कूदकर एकत्रित करते हैं। यह कार्य जोखिम भरा होता है , कई बार हादसा भी हो जाता है। किंतु उसकी परवाह किए बिना गंगापुत्र उन पैसों को एकत्रित कर उन्हें बेचते हैं। इस प्रकार अपना तथा परिवार का भरण पोषण करते हैं, यही गंगा मैया उनके आजीविका का साधन है।
प्रश्न – पुजारी ने लड़की के ‘हम’ को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया ? और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया ?
उत्तर – गंगा आरती के बाद संभव पुजारी के पास कलावा तथा टीका लगवाने के लिए ज्यों ही खड़ा हुआ वैसे ही एक कोमल साहब पुजारी की तरफ और बढ़ा लड़की के हम शब्द को पुजारी ने युगल अर्थ में समझा तथा पुजारी के मुख से आशीर्वचनओं के साथ ‘सदैव सुखी रहो, फूलो फलो, जब भी आना साथ ही आना , गंगा मैया मनोरथ पूरे करें’ जैसे आशीर्वचन निकल पड़े। यह वचन सुनकर संभव के मन में अद्भुत से विचार उत्पन्न हुए पूरा शरीर रोमांचित हो उठा।किंतु पारो छिटक कर दूर खड़ी हो गई और स्वयं को अकेले बताया।यह अटपटा अपन दोनों के मन में पंडित के आशीर्वाद के कारण आया था।
प्रतिवेदन लेखन की परिभाषा और उदाहरण
कार्यालयी लेखन की पूरी जानकारी
विज्ञापन लेखन परिभाषा, उदाहरण सहित पूरी जानकारी
पत्रकारिता लेखन के विभिन्न प्रकार
निष्कर्ष
इस लेख में हमने पढ़ा दूसरा देवदास पाठ का सार, सप्रसंग व्याख्या, एवं महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर जो परीक्षा में पूछे जा सकते हैं। आशा है आप को यह लेख काम आएगा और आप इस पाठ से जुड़ी परीक्षा में अच्छा करेंगे।
Question.1 ‘Dusra devdas’ kahani mein yuvaman ke aakarshan , prem aur manojagat ki uthal-puthal ki chitran kiya gaya hai ! i#Iske paksh aur vipaksh mein aane wale vichar vyakt karo ??
पारो से मिलने के बाद संभव के मन में जो उथल-पुथल थी वह युवा मन का आकर्षण प्रेम आदि था जो उसे पारो से मिलने के लिए प्रेरित कर रहा था साथ ही संभव के मन में अनेकों प्रश्न भी चल रहे थे क्या वह उससे कभी मिल पाएगा क्या उससे जुड़ पाएगा वह उसके प्रेम को स्वीकार करेगी या नहीं इस प्रकार के विपक्ष में प्रश्न भी उसके मन में विचरण कर रहे थे इसी को विस्तार देकर आप अपने उत्तर लिख सकते हैं।